up up 1 position down down ↓ bottom Remove this quote from your collection “मैं तुमसे प्रेम नहीं करता, मैंने पहले भी तुमसे कहा था। पर ! परवाह करता हूँ तुम्हारी, ये दिल चाहकर भी नहीं मानता। तुम कहीं भी रहो ये फिक़र नहीं। फ़िकर होती है तुम देर कर दो कहीं। न लौटो शाम तक घर तो नज़र हटती नहीं। सुई की किट-किट सा धड़कता है दिल का कोना-कोना। मन ब्याकुल हो उठता है। बेचैन सा कई सवाल करता है मुझसे मेरे अन्तर मन से, तुम कहाँ हो, क्यों नहीं लौटी अब तक। शाम ढलते ही मेरे सर का पआरा चढ़ता है। अंदर बाहर, बाहर अंदर सौ बार निकलता है। लगता है चक्कर घर से द्वार तक क्यों करता है मेरा मन ऐसा मेरे साथ? जबकि मैं हमेशा कहता हूँ तुमसे, मैंने पहले भी तुमसे कहाँ था। मैं तुमसे प्रेम नहीं करता।
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