10 बाय 10 के कमरे में दो फुट के रोशनदान से आती रोशनी देखकर गढ़ लेती हूं, गुनगुने ख़्वाब... हाथ बढ़ाकर, खुली आंखों से छू लेती हूं, जगमग आग का गोला... मन की खिन्नता, उंगलियां जला देती है.. पल भर की खुशी, दिल गुदगुदा जाती है... ठन्डे फर्श पर पाँव पटक, गुस्सा शांत करती हूं.. गरम कम्बल में कांपते हाथ छुपा, समेट लेती हूं ऊष्णता.. क्षणभंगुर जीवन को पलकों की आवाजाही सा महसूस करने लगी हूं...